आत्मबोध होना परमशांति और परमानंद में विशेष सहायक होता है। मनुष्य को जीवन जीते हुए यदि आत्मबोध हो जाए, तो इससे बड़ी कोई और बात हो ही नहीं सकती। उपनिषद भी इसी बात पर बल देते हैं। आत्मबोध होते ही मनुष्य का जीवन रूपांतरित हो जाता है। उसे स्वयं को समझने की शक्ति उसके जीवन को सार्थक बना देती है। यही आत्मबोध जब रत्नाकर को हुआ, तब वे महर्षि बाल्मीकि बन गए। इस प्रश्न का उत्तर सम्राट अशोक के जीवन में छिपा है। ........................